Tuesday, April 26, 2011
Friday, October 29, 2010
खेल खत्म, अब हिसाब-किताब शुरू....राष्ट्रमंडल खेलों की मेरी नज़र से समीक्षा का एक प्रयास
सबसे पहले मैं आपको इन राष्ट्रमंडल खेलो के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ। मेरा मतलब इसके इतिहास से है।
कॉमनवेल्थ खेल : आईये पहले मैं आपको इन खेलो का कुछ इतिहास बता दूँ.
इतिहास :
माननीय एशली कूपर वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने सदभावना को प्रोत्साहन देने और पूरे ब्रिटिश राज के अंदर अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए एक अखिल ब्रितानी खेल कार्यक्रम आयोजित करने के विचार को प्रस्तुत किया। वर्ष 1928 में कनाडा के एक प्रमुख एथलीट बॉबी रॉबिन्सन को प्रथम राष्ट्र मंडल खेलों के आयोजन का भार सौंपा गया। ये खेल 1930 में हेमिल्टन शहर, ओंटेरियो, कनाडा में आयोजित किए गए और इसमें 11 देशों के 400 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया।
तब से हर चार वर्ष में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन किया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इनका आयोजन नहीं किया गया था। इन खेलों के अनेक नाम हैं जैसे ब्रिटिश एम्पायर गेम्स, फ्रेंडली गेम्स और ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स । वर्ष 1978 से इन्हें सिर्फ कॉमनवेल्थ गेम्स या राष्ट्रमंडल खेल कहा जाता है। मूल रूप से इन खेलों में केवल एकल प्रतिस्पर्द्धात्मक खेल होते थे, 1998 में कुआलालम्पुर में आयोजित राष्ट्र मंडल खेलों में एक बड़ा बदलाव देखा गया जब क्रिकेट, हॉकी और नेटबॉल जैसे खेलों के दलों ने पहली बार अपनी उपस्थिति दर्ज की।
वर्ष 2001 में इन खेलों द्वारा मानवता, समानता और नियति की तीन मान्यताओं को अपनाया गया, जो राष्ट्रमंडल खेलों की मूल मान्यताएं हैं। ये मान्यताएं हजारों लोगों को प्रेरणा देती है और उन्हें आपस में जोड़ती हैं तथा राष्ट्रमंडल के अंदर खेलों को अपनाने का व्यापक अधिदेश प्रकट करती हैं। और अब ये खेल ओलंपिक खेलो के बाद विश्व के दुसरे सबसे बड़े खेल हैं।
इससे आपको शायद अनुमान हो गया होगा की इन खेलो या आयोजन सफल होना कितना आवश्यक था।
इन राष्ट्रमंडल खेलो को हम ३ हिस्सों में बांटकर इनका अवलोकन करें तो ज्यादा आसानी होगी।
१ खेलो की तैयारियों का समय : इन खेलो की तैयारियों में क्या क्या हुआ ये तो हम सभी जानते हैं। कई कई बार तैयारियों का देरी होना, नयी बनायी छत का टूटकर गिरना , पुल का टूटना , बहुत से प्रोजेक्ट का समय से तैयार न हो पाना, खिलाडियों का खेल गाँव में ना रूककर पांच सितारा होटल में रुकना, खेल गाँव में गंग्दगी या सांप का मिलना, हर जगह आयोजन समिति में दिखाई दे रहा भ्रष्टाचार आदि कई ऐसे मोके आये जब देश को विश्व के सामने शर्मिंदा होना पड़ा। बहुत से सुप्रशिद्ध ऐथ्लीट का ना आना या बाढ़ के हालात के कारण बीमारी के बहाने अपना नाम वापस ले लेना आदि अनेक ऐसे मोके आये जिससे लगा की इस बार इन खेलो में वो चमक नहीं रहेगी। इन सबके अतिरिक्त विदेशी मीडिया ने बहुत से आधारहीन मुद्दों को भी उछालना शुरू कर दिया। एक किस्सा मुझसे याद आता है। एक ऑस्ट्रेलिया के समाचार चैनल के एक रिपोर्टर ने एक सनसनी फैलाने वाली खबर पेश की जिसमें इन खेलो की सुरक्षा पर सवाल उठाये गए थे। उस साहसी रिपोर्टर के अनुसार वो जवाहर लाल नेहरु मैदान के अन्दर विस्फोटक सामग्री आसानी से ले जाने में सफल हो गया। बाकी विश्व के अखबारों और मीडिया ने इसे सच मानते हुए इसे सनसनी बनाकर पेश किया। बाद में ये खबर झूटी निकली तो किसी भी अखबार या न्यूज़ चैनल वालो ने माफीनामा पेश नहीं किया। क्यूं क्यूंकि इससे TRP थोड़े ही बढती है । पूरी जानकारी के लिए आप निम्न लिंक पर जा सकते हैं.
मेरी आपसे ये विनती है की आप इसे कम से कम एक बार अवश्य देखें .
http://www.youtube.com/watch?v=H6xk-Tm_1y4&feature=player_embedded
२ उद्घाटन समारोह का समय : ये समय वो समय था जब किसी के भी उम्मीद के विपरीत आयोजन समिति ने ऐसा उदघाटन समारोह प्रस्तुत किया की पूरा विश्व चकित रह गया। तब पहली बार आभास हुआ की भारत खेल कराने में सक्षम है । एक बेहद ही रंगारंग कार्यक्रम में फ़िल्मी हस्तियों को ना दिखाकर असली देश की छवि दिखाई गयी जोकि मेरे हिसाब से सर्वोत्तम बात थी । इस उदघाटन समारोह की पूरे विश्व में प्रशंशा की गयी। इसके बाद पूरे १३ दिनों तक पूरे विश्व ने एक बेहद ही बेहतरीन खेलो का आनंद लिया।
३ खेलो के बाद का समय : अब जब राष्ट्रमंडल खेल हुए और शान से निपट गए हैं। शानदार उद्घाटन और समापन समारोह ज्यादा अच्छे थे या खेलों का स्तर, यह विवाद का विषय नहीं होना चाहिए। दो विश्व रिकॉर्ड समेत 85 नए राष्ट्रमंडल रिकॉर्ड बनना अपने आप में नया रिकॉर्ड तो है ही, इस आयोजन के खेल और खिलाड़ियों के प्रदर्शन का सबसे अच्छा प्रमाणपत्र भी है। अब भले ही हमें और हमारे राजनेताओं को उद्घाटन और समापन समारोह से ज्यादा मतलब लगे, पर असल में ये कर्मकांड भर होने चाहिए। खिलाड़ियों ने जिस स्तर का खेल प्रदर्शन किया, उसने कई बातों के साथ इसे भी भुलवा दिया कि यहां उसैन बोल्ट जैसे कई बड़े खिलाड़ी नहीं आए थे। हमारे लिए खुशी की बात यह रही कि खेलों में हमारे खिलाड़ियों का प्रदर्शन भी अब तक का सर्वश्रेष्ठ रहा-हमने भी पदकों का रिकॉर्ड बनाने के साथ पहली बार पदक तालिका में नंबर दो का स्थान पाया। इसमें भी अच्छी बात यह थी कि ज्यादातर अच्छा प्रदर्शन करने वाले लड़के-लड़कियां ग्रामीण पृष्ठभूमि के थे और सोना-चांदी जीतने के पहले तक गुमनाम ही थे। एथलेटिक्स मुकाबलों में बने कई नए राष्ट्रीय रिकॉर्ड ने अगले माह होने जा रहे एशियाई खेलों में भारत के शानदार प्रदर्शन का संकेत दे दिया है, क्योंकि वहां मुकाबले का स्तर राष्ट्रमंडल जैसा नहीं होता। और एथलेटिक्स ही क्यों कुश्ती समेत कई सारे खेलों में इस बार भारतीय खिलाड़ी एशियाड में छा जाएं, तो हैरानी की बात न होगी। असल में हमारे ज्यादातर खिलाड़ियों ने मुश्किल स्थितियों और तरह-तरह की अव्यवस्थाओं के बीच भी जिस तरह का प्रदर्शन करके आयोजन को सार्थकता दी है, उसी ने आयोजकों के काफी सारे गुनाहों को ढक दिया है। अब कैग की जांच शुरू होने की खबर है। पर वह मुख्यतः वित्तीय घोटाले पकड़ने की कोशिश करेगा, जिसके लक्षण हर ओर दिखाई दे रहे थे। पर आयोजन के दिन तक जारी काम, हर जगह की गंदगी, खेल गांव में आखिरी दिन तक सांप निकलने और बंदरों की लुका-छिपी जैसे जो खेल हुए और जिनसे मुल्क की प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ, उसकी भरपाई कैसे होगी। उलटे अब यही लूट और अव्यवस्था वाली मंडली ओलंपिक के आयोजन की दावेदारी करने लगी है। कुल खर्चे और लाभ-घाटे का हिसाब भी सार्वजनिक होना चाहिए, क्योंकि जिस एक मनरेगा से देश भर में रोजगार गारंटी और सामाजिक लाभ के हजारों-लाखों काम हो रहे हैं, इस आयोजन पर उसके सालाना बजट से लगभग दोगुनी रकम खर्च होने का अनुमान है। खेल प्रतिभाओं को और निखारें यह जरूरी है, पर खेल आयोजन लूट और भ्रष्टाचार का बहाना न बने, यह ज्यादा जरूरी है।
अब मेरा आपसे प्रश्न है की " क्या वाकई खेल सफल थे ? "
LET THE DEBATE BEGIN
Thursday, October 28, 2010
पढेंगे तभी तो आगे बढ़ेंगे.........एक प्रयास है विश्वास आप देंगे साथ
आज भी भारत में आपको किसी भी जगह बिना पढ़े लिखे व्यक्ति और छोटे -२ बच्चे आसानी से मिल जायेंगे। नीचे दर्शाए गए चार्ट में आप भारत के सभी राज्यों की साक्षरता दर देख सकते हैं
हालाकि भारत सरकार समय-२ पर आवश्यक कदम उठाती रही है और इसी का नतीजा है की हमारी साक्षरता दर तेज़ गति से बाद रही है । हालाकि अभी भी इसमें बहुत कुछ किया जाना बाकी है । सन २०१० में भारत सरकार ने प्रस्तावित बजट में रुपये ३१०३६ करोड़ केवल शिक्षा के लिए आवंटित किये गए । इन्ही प्रयासों का प्रभाव है की भारत की ज़मापून्ज़ी कहे जाने वाले युवा वर्ग की साक्षरता दर में काफी प्रगति हुई है। इसे आप नीचे दिए गए चित्र से भलीभांति समझ सकते हैं ।
परन्तु मेरा प्रश्न आज आपसे ये है की क्या यह सिर्फ सरकार की ही ज़िम्मेदारी बनती है की वो ही सबको शिक्षा प्रदान करे। चाहे वो कोई नयी योजना हो या रुपियो का आवंटन। क्या हमारा कोई दायित्व नहीं बनता की हम अपने आस पास दिखाई दे रहे ऐसे गरीब असहाय बच्चो की कुछ थोड़ी सी मदद करें। क्या जब आपके घर में कचरा होता है तो क्या आप उसे साफ़ नहीं करते। ये भारत भी हमारा देश हमारा घर है। ये हमारा दायित्व है के इस घर में पल रही असाक्षरता रुपी कचरे को बाहर निकाल फेंकें।
इसी एक प्रयास के रूप में मैं यहाँ एक अंग्रेजी के समाचार पत्र का उल्लेख करना चाहूँगा जो लगातार इसी तरह के सार्थक प्रयासों में लगा रहता है। जी हाँ आपने सही समझा। मैं यहाँ TIMES OF INDIA की ही बात कर रहा हूँ। उनके एक बेहद बेहतरीन विज्ञापन ने मेरा ध्यान आकर्षित किया जिसे मैं आपके साथ बांटना चाहता हूँ।
यही मेरा एक प्रयास है जिसे मैं चाहता हूँ के ये पूरे भारत में फैले और हम सब प्रण लें की हम भारत से ये असाक्षरता रुपी रावण का वध करेंगे।
क्या आप लेते हैं मेरे साथ प्रण ?
Wednesday, October 20, 2010
Friday, September 17, 2010
आपको कब पता चलता है की आप प्यार में हैं........सर्वोत्तम जवाब
पर जब वही विशेष आपके आस पास नहीं रहता और आप आस पास उसे ही खोजते हैं
तो उस समय आप प्यार में हैं
यद्यपि आप किसी और के साथ हैं जोकि आपको हमेशा हंसाता है
तो आप प्यार में हैं
अगर आप किसी और के द्वारा भेजे गए बड़े बड़े ई-मेल से ज्यादा उस विशेष के एक लाइन के छोटे से ई-मेल से उत्साहित होते हैं
जब आप अपने आपको ऐसी हालत में पाएं कि किसी विशेष की वजह से अपने फोन में पड़े ई-मेल या एसएमएस संदेश में नहीं मिटा सकते हैं
तो आप प्यार में हैं ।
जब आपको मुक्त फिल्म टिकट की एक जोड़ी मिल जाए
जब आप यह पढ़ रहे हैं, अगर कोई अपने मन में प्रकट होता है,