Saturday, April 3, 2010

उत्तर प्रदेश में अंधेरा लाइलाज

अगर आप उत्तर प्रदेश में रहते हैं तो इन गर्मियों में आपको बिजली की किल्लत और ज्यादा परेशान करेगी। राज्य की सरकार प्रदेश में अंधेरे के इलाज का कोई कारगर तरीका नहीं ढूंढ़ पाई है। अपने खस्ताहाल बिजलीघरों पर राज्य सरकार ने जितना पैसा खर्च किया, उससे ज्यादा डुबो दिया है। राज्य सरकार ने अपने सात बिजलीघरों के आधुनिकीकरण पर 2300 करोड़ रुपये खर्च किए। लेकिन नतीजे में इन बिजली घरों से 3000 करोड़ घाटा निकला है।

प्रदेश के तमाम बिजलीघर सरकार की नाकामियों के चलते पहले ही एनटीपीसी को कर्ज की भेंट चढ़ चुके हैं। जो ताप बिजलीघर प्रदेश सरकार के पास बचे भी हैं, उनमें भी कुछ अपनी उम्र की सिल्वर जुबली मना चुके हैं। भारत सरकार के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक [सीएजी] का मानना है कि राज्य सरकार नए बिजलीघर लगाना तो दूर पुराने बिजली कारखानों को कायदे से सुधार भी नहीं पाई है। उत्तर प्रदेश के सार्वजनिक उपक्रमों पर सीएजी की ताजी रिपोर्ट के मुताबिक खस्ताहाल ताप [कोयला आधारित] बिजलीघरों को चमकाने की कोशिश में भी सरकार अपने हाथ जला बैठी। सीएजी की उत्तर प्रदेश के सार्वजनिक उपक्रमों पर रिपोर्ट के मुताबिक इन सातों बिजलीघरों की सेहत सुधारने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम एकमुश्त 2363.52 करोड़ रुपये खर्च तो कर दिए। लेकिन बिजलीघरों की सेहत सुधारने की योजना बनाने से लेकर उसके पूरा होने तक कोई काम कायदे से नहीं हुआ। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक योजना बनाने और उसके शुरू होने में देरी को लेकर बिना प्रतिस्पर्धी निविदा के सरकारी कंपनी भेल को ठेका दे देने और बिजलीघरों के आधुनिकीकरण में खराब सामान के इस्तेमाल होने तक कुछ भी ठीक नहीं रहा।

करीब ढाई हजार करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी ये बिजलीघर न तो ठीक से काम कर पाए और न ही मानकों को पूरा कर पाए। इसके चलते 2006-07 से लेकर 2008-09 के दौरान उत्पादन निगम को 3031.11 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में सार्वजनिक उपक्रम भेल को भी देरी के लिए दोषी माना है।

बिजली पैदा करना तो दूर उसके इस्तेमाल के बदले बिल लेने की व्यवस्था को लेकर भी सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में सवाल उठाए हैं। राज्य के 17 जिलों में बिजली के वितरण और बिलिंग के लिए जिम्मेदार दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का कामकाज भी दुरुस्त नहीं पाया गया है। कंपनी बिलिंग का काम निजी एजेंसियों से कराती है। लेकिन कंपनी न तो सही तरीके से उपभोक्ताओं की खपत के मुताबिक बिलिंग कर पा रही है और न ही खपत के मानकों का उल्लंघन करने वाले उपभोक्ताओं से उचित शुल्क वसूल पा रही है।

राज्य सरकार के पास नहीं है

अपनी 26 कंपनियों का हिसाब

लापरवाही और सुस्त सरकारी तंत्र का इससे बेहतर नमूना क्या होगा कि जब देश के एक अहम राज्य की करीब 26 कंपनियों के कामकाज का सरकार के पास हिसाब किताब ही न हो। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार को शायद खुद ही यह नहीं मालूम कि वह 43 ऐसी कंपनियों को ढो रही है जिनमें कामकाज ही नहीं हो रहा है। नियंत्रक व महालेखा परीक्षक [सीएजी] की राय है कि इन उपक्रमों को बंद कर देना चाहिए।

राज्य सरकार की कंपनियों के खातों की गड़बड़ी सिर्फ इन्हीं कंपनियों तक सीमित नहीं है। छब्बीस कंपनियां तो ऐसी हैं जिन्होंने अपने पहले साल का ही हिसाब किताब मुहैया नहीं कराया है। सीएजी के मुताबिक राज्य की 54 कंपनियां ऐसी भी हैं, जिनमें करीब 197 खातों के बारे में 2008-09 में कुछ अता पता ही नहीं है। इन्हें अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है।

वैसे राज्य में कुल 82 सार्वजनिक उपक्रम ऐसे हैं जो चालू हालत में हैं। इनमें से मात्र 30 उपक्रमों ने 2008-09 के दौरान 538.41 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। जबकि 26 सरकारी कंपनियां घाटे में चल रही हैं। इन कंपनियों का घाटा इस दौरान 3948.94 करोड़ रुपये रहा है। लेकिन सीएजी को सबसे ज्यादा हैरान किया है उन 43 उपक्रमों ने जिनमें आज की तारीख में कोई कामकाज नहीं हो रहा है। सीएजी का कहना है कि जब ये उपक्रम सरकार के किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर रहे हैं तो इन्हें बनाए रखने का कोई लाभ नहीं है और इन्हें बंद कर देना चाहिए।

1 comments:

Deepak said...

rajya sarkaar ne uttar pradesh ko rausan karne ke chakkar mein khud ka haath jala liya lekin bijli ko lekar uttar pradesh ki halat sudharne mein asafal rahi